किडनी ट्रांसप्लांट एक ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया है, जो अंतिम चरण गुर्दे की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए एक जीवन रक्षक की तरह होता है | इस सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान क्षतिग्रस्त हुए किडनी को जीवित व्यक्ति से प्राप्त स्वस्थ किडनी या फिर मृत व्यक्ति से प्राप्त स्वस्थ किडनी के साथ बदल दिया जाता है | किडनी ट्रांसप्लांट गुर्दे की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है, लेकिन आपको बता दें किडनी ट्रांप्लांट सर्जरी को करवाने के बाद कई बार इसके जोखिम कारक और जटिलताओं जैसे चुनौतियों से सामना करना भी पड़ जाता है | पीड़ित व्यक्ति और उनके परिवार के सदस्यों के लिए इन विकारों का समझना बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसकी जटिलयताएँ चिकित्सा यात्रा को बढ़ा सकती है | आइये जानते है किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़े कुछ जोखिम कारक, जटिलताएं और सर्जरी के बाद मरीज़ कैसे रिकवर करता है :-
किडनी ट्रांसप्लांट को करवाने का निर्णय लेना
किडनी ट्रांसप्लांट को करवाने से पहले निर्णय लेना बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह अक्सर विभिन्न विकारों और विचार करने के बाद, सर्जरी को करने का निर्णय लिया जाता है, जैसे की किडनी की बीमारी की परिस्थिति, गंभीरता, मरीज़ का समग्र स्वास्थ्य और उपयुक्त डोनर की उपलब्धता आदि | किडनी ट्रांसप्लांट उन मरीज़ों के लिए अनुशंषित किया जाता है, जो ESRD यानी अंतिम चरण गुर्दे की बीमारी से ग्रसित होते है और जिन्होंने डायलिसिस जैसे अन्य उपचारों में अपनी अच्छी प्रतिक्रिया नहीं दी होती है | यह सर्जिकल प्रक्रिया डायलिसिस की प्रतिबंधों की तुलना में मरीज़ के जीवन की बेहतर गुणवत्ता और अधिक स्वतंत्रता को प्रदान करता है |
किडनी ट्रांसप्लांट करने से पहले का मूल्याकांन
किडनी ट्रांसप्लांट की सर्जिकल प्रक्रिया से पहले, इसे उपयुक्त स्थापित करने के लिए मरीज़ों को कई तरह पूर्व मूल्याकांन से गुजरना पड़ता है | इसमें पूर्व चिकित्सक इतिहास की समीक्षा, समग्र शारीरिक परीक्षण, रक्त परीक्षण, इमेजिंग अध्ययन और कभी-कभी मनोवैज्ञानिक से जुड़े मूल्याकांन भी शमिल होते है | इसका उद्देश्य, इस बात का सुनिश्चित करना है की मरीज़ सर्जरी और अस्वकृति को रोकने के लिए आवश्यक जीवनभर प्रतिरक्षा दमनकारी चिकित्सा को झेलने के लिए पर्याप्त रूप से स्वस्थ है या फिर नहीं |
किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया
किडनी ट्रांसप्लांट की सर्जरी को आमतौर पर 3 से 4 घंटे का समय तक लग जाता है और सामान्य एनेस्थीसिया के तहत इस सर्जरी को किया जाता है | इस सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान सर्जन नए गुर्दे को मरीज़ के पेट के निचले हिस्से में रखता है और इससे मरीज़ की रक्त वाहिकाओं और मूत्राशय को जोड़ता है | क्षतिग्रत हुए गुर्दे को तब तक के लिए उसी स्थान पर छोड़ दिया जाता है, जब तक यह संक्रमण या फिर उच्च रक्तचाप जैसे जटिलताओं को उत्पन्न करना न शुरू कर दें | एक बार जब नए गुर्दों में रक्त बहना शुरू हो जाता है, तो यह काम करना और मूत्र को उत्पादन करना शुरू कर देता है |
किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़े कुछ जोखिम कारक
किडनी ट्रांसप्लांट के जोखिम कारक, किसी भी सर्जरी तरह एक समान होते है | रक्तस्राव, संक्रमण और साँस लेने में समस्या होना, इसके जोखिम कारक होते है | कुछ दवाओं के दुष्प्रभावों से भी, इससे जुड़े जटिलताओं को बढ़ावा मिल सकता है और संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ सकता है, क्योंकि सर्जरी के बाद जो दवायें डॉक्टर द्वारा निर्धारित की होती है, वह शरीर में संक्रमण से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने का कार्य करता है |
किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़े कुछ जटिलताएं
- किडनी ट्रांसप्लांट के बाद कुछ मामूली संक्रमण जैसे कि मूत्र पथ संक्रमण यानी यूटीआई, सर्दी का होना और फ्लू होना सामान्य माना जाता है | इसके अलावा निमोनिया और साइटोमेगालोवायरस जैसे गंभीर संक्रमण होने की संभावना भी होती है |
- शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नए किडनी को बाहरी या विदेशी समझकर, उस पर हमला कर सकती है, इससे तीव्र और लंबे समय के लिए अस्वीक्रृति की समस्या हो सकती है |
- किडनी बीमारी के इतिहास वाले पीड़ित मरीज़ों में अक्सर हृदय संबंधी समस्याओं का जोखिम कारक बढ़ सकता है |
- किडनी ट्रांसप्लांट के बाद, रिकवरी के लिए खायी जाने वाली दवाइयां मधुमेह के स्तर को बढ़ा सकती है |
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद रिकवरी
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद मरीज़ की ठीक होने में कम से कम छः से आठ सप्ताह का समय लग सकते है और इसके बाद ही वह अपने सामान्य गतिविधियों में वापिस जा सकते है | हालांकि समग्र स्वास्थ्य और अन्य कारकों के आधार पर रिकवरी का समय अलग-अलग भी हो सकता है, जो पूर्ण रूप से आपकी परिस्थिति पर निर्भर करता है |
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